एक बच्चे ने छुआ
बात कल की
एक बच्चे ने छुआ हमको
हो गई मीठी सभी साँसें!
हम सुबह की आरती को
सुन रहे थे
धूप भी थी गुनगुनी
नदी-तट की हवा में भी
थी खुनक-सी फागुनी
गुलमोहर के पेड़ से
छनती हुई
रात-भर हमको दिखी थीं
चाँदनी साँसें!
किंतु ये सब
बिना बच्चे की छुअन के
थे अधूरे
नेह का जो स्पर्श
उसने दिया हमको
उसी से सुख हुए पूरे
अभी भी
दोहरा रही हैं
मंत्र उसके दिए
अपनी काँपती साँसें!
काश!
वह बच्चा छुए सबको
कि सबकी आँख में जल हो
हुई पत्थर देह जो
वह, सुनो
फिर से नई कोंपल हो
जो चतुर है
या हिसाबी
बनें वे भी फूल की
खुशबू-भरी साँसें!
२३ नवंबर २००९ |