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वंशी की धुन

     

 





 

 


 




 

वंशी की धुन गूँजी
नीलबरन हुई साँस राधा की

बावरी हुई आँखें
श्याम-रंग हैं राती
पूजा के दीये की
देह हुई है बाती

हँसती ही रहती है
फूलों-की-छुई साँस राधा की

वह नख से शिख तक है
पूनो का रास हुई
सच, कदम्ब-फूलों की
मदमाती बास हुई

यमुना का जल बहका
छूकर जलकुईं-साँस राधा की

पीर मिटी जनमों की
भवबाधा भी सारी
उसके तो सत-पत हैं
एक सिर्फ बनवारी

हमने यह कथा कही
मेट रही दुई साँस राधा की

कुमार रवीन्द्र
३० अगस्त २०१०

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