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अनुभूति में जय चक्रवर्ती की रचनाएँ

नये गीतों में-
काम आता ही नहीं कुछ
तुम भी बदलो पापा
मेरे गाँव में
रहे जब तक पिता
सच सच बताना

गीतों में-
कभी किसी दिन घर भी आओ
किसकी कौन सुने
खड़ा हूँ बाजार में
खत नहीं आया
चलो रैली में
पिता

बना रहे घर जैसा घर
महँगाई भत्ता
ये दिल्ली है
राजा जी हैं धन्य

दोहों में-
राजनीति के दोहे

 

ये दिल्ली है

ये दिल्ली है
दिल्ली-दुखिया क्या-क्या सहती है!

हर टोपी–कुर्ता–झण्डा
इसको फुसलाता है
जो भी आता घाव नया-
देकर ही जाता है
मगर नहीं ये कभी किसी से
कुछ भी कहती है।

नजरों पर दिल्ली रहती है
दिल्ली पर नजरें
दिल्ली को दिल्ली रखती हैं
दिल्ली की खबरें
कुर्सी के सपनों में केवल
दिल्ली रहती है।

नित्य सुबह से शाम बैठ
सत्ता के कोठे पर
पल-पल रहती दिल्ली खुद ही
बिकने को तत्पर
रोज सँवरती बाहर से
भीतर से ढहती है।

२७ अक्तूबर २०१४

 

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