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अनुभूति में जय चक्रवर्ती की रचनाएँ

नये गीतों में-
काम आता ही नहीं कुछ
तुम भी बदलो पापा
मेरे गाँव में
रहे जब तक पिता
सच सच बताना

गीतों में-
कभी किसी दिन घर भी आओ
किसकी कौन सुने
खड़ा हूँ बाजार में
खत नहीं आया
चलो रैली में
पिता

बना रहे घर जैसा घर
महँगाई भत्ता
ये दिल्ली है
राजा जी हैं धन्य

दोहों में-
राजनीति के दोहे

 

राजा जी हैं धन्य

तीर कपोतों पर ताने
गिद्धों को पाले हैं
राजा जी हैं धन्य कि
उनके खेल निराले हैं।

उनका जाल, उन्हीं के दाने
धनुष-वाण उनका
उनकी मजलिस, उनका मुंसिफ़
संविधान उनका।
सब दरवाजे उनके
उनके
चाबी-ताले हैं।

प्रजाजनों का धर्म
‘निवाला’ बनकर सभी चलें
राजा जी का शौक कि जिसको
जब चाहें निगलेंउनके
मुँह में खूनऔर
वे ही
रखवाले हैं।

पहन रखे हैं उनके चेहरे ने
चेहरे अनगिन
क्या पूरब क्या पश्चिम
उनको क्या उत्तर-दक्खिन
अँधियारे हैं सबके
उनके-
सिर्फ उजाले हैं।

२७ अक्तूबर २०१४

 

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