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अनुभूति में जय चक्रवर्ती की रचनाएँ

नये गीतों में-
काम आता ही नहीं कुछ
तुम भी बदलो पापा
मेरे गाँव में
रहे जब तक पिता
सच सच बताना

गीतों में-
कभी किसी दिन घर भी आओ
किसकी कौन सुने
खड़ा हूँ बाजार में
खत नहीं आया
चलो रैली में
पिता

बना रहे घर जैसा घर
महँगाई भत्ता
ये दिल्ली है
राजा जी हैं धन्य

दोहों में-
राजनीति के दोहे

  राजनीति के दोहे

ताकि भोगते रह सकें, सिंहासन का संग।
स्वयं युधिष्ठर रंग गये दु:शासन के रंग।।

क्या कोई देखे वहाँ, सपनों की तस्वीर।
जुगनू लिखते हों जहाँ, सूरज की तक़दीर।।

छौनों के सपने छिने, गौरेयों के नीड़।
लाल किला बुनता रहा, वादे, भाषण, भीड़।।

भूख लपेटे पेट पर, और होंठ पर प्यास।
पंख-नुचे सपने लिये, सिसक रहा इतिहास।।

सरे आम भूने गये, नित असहाय, अबोध।
दिल्ली रही बघारती, एक नपुंसक क्रोध।।

राजा जी तुम भोगते, हर सुविधा का भोग।
किंतु हमारे वास्ते, नये-नये आयोग।।

बुलबुल कारावास में, पहरे पर सैयाद।
अब होने को क्या बचा, यह होने के बाद।।

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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