अनुभूति में
जय चक्रवर्ती की रचनाएँ
नये गीतों में-
काम आता ही नहीं कुछ
तुम भी बदलो पापा
मेरे गाँव में
रहे जब तक पिता
सच सच बताना
गीतों में-
कभी किसी दिन घर भी आओ
किसकी कौन सुने
खड़ा हूँ बाजार में
खत नहीं आया
चलो रैली में
पिता
बना रहे
घर जैसा घर
महँगाई भत्ता
ये दिल्ली है
राजा जी हैं धन्य
दोहों में-
राजनीति के दोहे |
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बना रहे घर-जैसा
घर
बना रहे
घर जैसा घर
इसी फिक्र में कटी उमर
जब दफ्तर में थे तो दफ्तर
घर में थे तो केवल घर
आँखों में
लेकर घर को
हम निकले घर से बाहर
घर की बात हुई जब बेघर
नींद न आई रात रात भर
रहे देह में
बन कर घुन
जाने कैसे कैसे डर
सबको लिखा सभी को जाँचा
किंतु मुझे कब किसने बाँचा
दिल में ही
पैबस्त हुए
बेचारे दिल के आखर
५
दिसंबर २०११ |