अनुभूति में
जय चक्रवर्ती की रचनाएँ
नये गीतों में-
काम आता ही नहीं कुछ
तुम भी बदलो पापा
मेरे गाँव में
रहे जब तक पिता
सच सच बताना
गीतों में-
कभी किसी दिन घर भी आओ
किसकी कौन सुने
खड़ा हूँ बाजार में
खत नहीं आया
चलो रैली में
पिता
बना रहे
घर जैसा घर
महँगाई भत्ता
ये दिल्ली है
राजा जी हैं धन्य
दोहों में-
राजनीति के दोहे |
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तुम भी बदलो पापा
बेटा बोला-
बदल गई है दुनिया
तुम भी बदलो पापा
भारत को भूलो
‘इण्डिया’से
नाता जोड़ो
पियो पेप्सी-कोक
छाछ-लस्सी को छोड़ो
‘ब्लैक–डॉग’ के सँग
डिस्को-डीजे की
धुन पर उछलो पापा
खत्म गाँव का करो
झमेला
सब कुछ बेचो
चलो राजधानी
महलों की जग-मग देखो
बूढ़ी-भाषा
जड़-संस्कारों से अब
बाहर निकलो पापा
मिलो-
व्हाट्सएप, ट्विटर
फेसबुक पर मित्रों से
जीवन के सब दुख-सुख
शेयर करो चित्रों से
मेल-मोहब्बत,
ख़तो-किताबत अब
बक्से में रख लो पापा
११ मई २०१५ |