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अनुभूति में जय चक्रवर्ती की रचनाएँ

नये गीतों में-
काम आता ही नहीं कुछ
तुम भी बदलो पापा
मेरे गाँव में
रहे जब तक पिता
सच सच बताना

गीतों में-
कभी किसी दिन घर भी आओ
किसकी कौन सुने
खड़ा हूँ बाजार में
खत नहीं आया
चलो रैली में
पिता

बना रहे घर जैसा घर
महँगाई भत्ता
ये दिल्ली है
राजा जी हैं धन्य

दोहों में-
राजनीति के दोहे

 

रहे जब तक पिता

रहे जब तक पिता, घर
जैसा रहा घर

एक चौका-एक चूल्हा
एक आँगन-एक छत
एक जैसे मन सभी के
मुँह अलग पर एक मत

एक डोरी से बँधे थे
धरा-अंबर

उत्सवों जैसा सदा था
उत्सवों का आगमन
दमकती थी द्वार पर
उल्लास की उजली किरन

स्वर अभावों का कभी
ठहरा न पल भर

शीश पर वट-बृक्ष–सी
छाया हमेशा थी सघन
शीत-वर्षा–घाम सब में
घुली थी स्नेहिल-छुवन

डर अँधेरों का हमेशा
रहा डर कर

११ मई २०१५

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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