अनुभूति में
जय चक्रवर्ती की रचनाएँ
नये गीतों में-
काम आता ही नहीं कुछ
तुम भी बदलो पापा
मेरे गाँव में
रहे जब तक पिता
सच सच बताना
गीतों में-
कभी किसी दिन घर भी आओ
किसकी कौन सुने
खड़ा हूँ बाजार में
खत नहीं आया
चलो रैली में
पिता
बना रहे
घर जैसा घर
महँगाई भत्ता
ये दिल्ली है
राजा जी हैं धन्य
दोहों में-
राजनीति के दोहे |
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खत नहीं आया
बहुत दिन से किसी का
खत नहीं आया
खत कि जिसमें
स्नेह की सौगात होती थी
मनाने रूठने की बात होती थी
जिंदगी की राह के ये मीत
किसने इन्हें भरमाया
खत कि जो
दुख सुख अकेले में बँटाते थे
हम उन्हें सुनते कभी हम भी सुनाते थे
इस मधुर अनुबंध पर किसकी
न जाने पड़ गई छाया
भोगने को
शेष हैं अब शब्द कुछ छूछे
नेह सीझे अक्षरों का कौन दुख पूछे
डस गई राजी खुशी, शुभकामना
सब हैलो की माया
५
दिसंबर २०११ |