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अनुभूति में जय चक्रवर्ती की रचनाएँ

नये गीतों में-
काम आता ही नहीं कुछ
तुम भी बदलो पापा
मेरे गाँव में
रहे जब तक पिता
सच सच बताना

गीतों में-
कभी किसी दिन घर भी आओ
किसकी कौन सुने
खड़ा हूँ बाजार में
खत नहीं आया
चलो रैली में
पिता

बना रहे घर जैसा घर
महँगाई भत्ता
ये दिल्ली है
राजा जी हैं धन्य

दोहों में-
राजनीति के दोहे

 

कभी किसी दिन घर भी आओ

आते-जाते ही मिलते हो,
भाई थोड़ा वक्त निकालो
कभी किसी दिन घर भी आओ!

चाय पियेंगे, बैठेंगे कुछ देर
हँसेंगे बतियाएँगे
कुछ अपनी, कुछ इधर-उधर की
कह–सुन मन को बहलाएँगे
बीच रास्ते ही मिलते हो
भाई थोड़ा वक्त निकालो
कभी किसी दिन घर भी आओ!

मिलना-जुलना बात-बतकही,
हँसी-ठिठोली सपन हुए सब
बाँट-चूँटकर खाना–पीना
साझे दुख-सुख हवन हुए सब
रोज भागते ही मिलते हो
भाई थोड़ा वक्त निकालो
कभी किसी दिन घर भी आओ!

२७ अक्तूबर २०१४

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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