अनुभूति में
जय चक्रवर्ती की रचनाएँ
नये गीतों में-
काम आता ही नहीं कुछ
तुम भी बदलो पापा
मेरे गाँव में
रहे जब तक पिता
सच सच बताना
गीतों में-
कभी किसी दिन घर भी आओ
किसकी कौन सुने
खड़ा हूँ बाजार में
खत नहीं आया
चलो रैली में
पिता
बना रहे
घर जैसा घर
महँगाई भत्ता
ये दिल्ली है
राजा जी हैं धन्य
दोहों में-
राजनीति के दोहे |
|
चलो रैली में
चलो, भाई चलो...
रैली में
मसीहा ने बुलाया है
खेत के, खलिहान के
सब काम छोड़ो
बैनरों से-पोस्टरों से
नाम जोड़ो
चलो
देखो-
महल सपनों का
मसीहा ने बनाया है
पेट भरने को
मधुर भाषण वहाँ हैं
ओढ़ने को-
ढेर आश्वासन वहाँ हैं
चलो-
सुनने
फिर मसीहा ने
प्रगति का गीत गया है
हम वहाँ झंडे
कभी नारे बनेंगे
जलूसों के बीच
जयकारे बनेंगे
हम इसी के
वास्ते हैं-
यह मसीहा ने बताया है।
५
दिसंबर २०११ |