अनुभूति में
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सूर्य- तीन कविताएँ
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अनुबंध
आज में जी लें
आओ सिखाएँ प्रीत मीत हम
कर्मभूमि की यह परिभाषा
कौन सुनता है तुम्हारी बात अब
खुद से प्यार
मन मेरा यह चाहे छू लूँ
मेरा जीवन
बंजारा है
यादें जब भी आती हैं
ये शरीर है एक सराय
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यादें जब भी आती
हैं
यादें जब भी मेरे मन के द्वारे आतीं हैं
दिल भर आता और आंखें भी नम हो जातीं हैं
बीते कल के दृश्य पटल पर
उगने लगते हैं
बिछड़े हुये बेगाने भी सब
अपने लगते हैं
दर्द भरी तस्वीरें जब भी
मन तड़पाती है
ंदिल भर आता और आंखें भी
नम हो जाती हैं
तेरा- मेरा इसका - उसका
सब रह जाता है
एक हवा का झोंका जब
जीवन छल जाता है
संबंधों की शिला जब कभी
यूं ढह जाती है
दिल भर आता और आंखें भी
नम हो जाती हैं
१६ जुलाई २००६ |