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अनुबंध
आज में जी लें
आओ सिखाएँ प्रीत मीत हम
कर्मभूमि की यह परिभाषा
कौन सुनता है तुम्हारी बात अब
खुद से प्यार
मन मेरा यह चाहे छू लूँ

मेरा जीवन बंजारा है
यादें जब भी आती हैं
ये शरीर है एक सराय

  अनुबंध

सांस से मैंने किया
अनुबंध जब
स्वप्न आँखों में
नए बसने लगे।

ज़िंदगी को अर्थ
मन को प्यार की भाषा मिली
तन को सुंदरता
संबंधों को परिभाषा मिली

ज्ञान से मैंने किया
अनुबंध जब
प्रश्न आकर
नित नये डसने लगे

उम्र की दहलीज
अनुभव की कहानी कह गई
दोस्तों के हाथ
छालों की निशानी रह गई

अश्क से मैंने किया
अनुबंध जब
दर्द आकर नित
नये सजने लगे

१६ जुलाई २००६

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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