आओ सिखाएँ प्रीत
मीत हम आओ सिखाएँ प्रीत
मीत हम
तुमको अंतरमन की।
तुम्हें कराएँ तुमसे परिचित
छोड़ बात जन जन की।
ये जग तो इक मोहजाल है
रिश्ते-नाते झूठे हैं।
अहम-स्वार्थ से जीते हैं सब
अपनों ने घर लूटे हैं।
आओ बतायें बातें हम कुछ
तुमको स्वयं-सृजन की।
ये शरीर माटी का पुतला
माटी में मिल जाएगा।
बह रहा जो रक्त है इसमें
सब पानी बन जाएगा।
आओ पढ़ाएँ बातें हम कुछ
तुमको स्व-अर्चन की।
१६ फरवरी २००९ |