मैं खुश होऊँगा
आज छिड़ा है राजनैतिक द्वंद
हो रहे हैं नित-नए षडयंत्र
और शिकार हो रहा है
ईमान-धर्म और प्रजातंत्र
मैं खुश होऊँगा उस समय
जब घर-घर मानवीय मौत का तांडव होगा
मानसिक अंतर्द्वद होगा
चीखेंगी-पुकारेंगी आत्मायें
रोएगी राजनीति
और फिर सब कुछ
शांत हो जाएगा
शमशान की ठण्डी चिता की तरह
राख हो जाएगा
अहं-स्वार्थ और घमण्ड
तभी होगा भौतिकता का अंत
फिर होगा उदय
बौद्धिकता के नए सूरज का
फिर आएगा एक बार फिर
ईमान-धर्म का राज
फिर जन्म लेगा कोई
गांधी-मसीहा
तब कहीं एक बार फिर छाएगी शांति
उस समय मैं
बहुत खुश होऊँगा
नई सृष्टि की खुशी में
नाचूँगा-गाऊँगा
और पाऊँगा आत्मिक शांति
फिर चला जाऊँगा
किसी अनजानी दिशा में
कभी वापस न लौटने के लिए
११ जनवरी २०१०
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