अनुभूति में
दिनेश सिंह की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
अकेला रह गया
चलो देखें
नाव का दर्द
प्रश्न यह है
भूल गए
मैं फिर से गाऊँगा
मौसम का आखिरी शिकार
गीतों में-
आ गए पंछी
गीत की संवेदना
चलती रहती साँस
दिन घटेंगे
दिन की चिड़िया
दुख के नए तरीके
दुख से सुख का रिश्ता
नए नमूने
फिर कली की ओर
लो वही हुआ
साँझ ढले
हम देहरी दरवाजे
संकलन में-
फूले फूल कदंब-
फिर कदंब फूले
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दिन घटेंगे
जनम के सिरजे हुए दुख
उम्र बन-बनकर कटेंगे
ज़िन्दगी के दिन घटेंगे
कुआँ अँधा बिना पानी
घूमती यादें पुरानी
प्यास का होना वसंती
तितलियों से छेड़खानी
झरे फूलों से पहाड़े-
गंध के कब तक रटेंगे?
ज़िन्दगी के दिन घटेंगे
चढ़ गये सारे नसेड़ी
वक़्त की मीनार टेढ़ी
'गिर रही है- गिर रही है'-
हवाओं ने तान छेड़ी
मचेगी भगदड़ कि कितने स्वप्न
लाशों से पटेंगे
ज़िन्दगी के दिन घटेंगे
परिंदे फिर चमन में
खेत बागों में कि वन में
चहचहायेंगे
नदी बहती रहेगी उसी धुन में
चप्पुओं के स्वर लहर बनकर
कछारों तक उठेंगे
ज़िन्दगी के दिन घटेंगे
८ अगस्त २०११ |