अनुभूति में
दिनेश सिंह की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
अकेला रह गया
चलो देखें
नाव का दर्द
प्रश्न यह है
भूल गए
मैं फिर से गाऊँगा
मौसम का आखिरी शिकार
गीतों में-
आ गए पंछी
गीत की संवेदना
चलती रहती साँस
दिन घटेंगे
दिन की चिड़िया
दुख के नए तरीके
दुख से सुख का रिश्ता
नए नमूने
फिर कली की ओर
लो वही हुआ
साँझ ढले
हम देहरी दरवाजे
संकलन में-
फूले फूल कदंब-
फिर कदंब फूले
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चलती रहती
साँस
बुझे हुए चूल्हे में
चिनगी-भर आग
ऐसे चलती रहती है साँस
अम्मा बैठी डाले कानों में तेल
आँगन में उलटी है मुन्ने की रेल
प्रिया कहीं लादे पर्वत-सा एकांत
यादों में खेल रही पानी का खेल
भीग गया भीतर तक
घर का एहसास!
ऐसे चलती रहती साँस
दिग-दिगंत नहीं दिखे आँगन के पार
एक आँख उलझी है निमिया की डार
जाले ही जाले है मकड़ी से हम
वर्षों से बंद पड़े हैं खिड़की के द्वार
छूने से झरता
चूने का विश्वास!
ऐसे चलती रहती साँस
रूखा-सूखा खुरदरा-सा इस्नेह
संबंधों पर उगते जाते संदेह
पास-पास विरवे हैं दूर-दूर हम
यों होते जाते हैं देह से विदेह
इनको उनमें रहती
प्रश्न की तलाश!
ऐसे चलती रहती साँस
८ अगस्त २०११ |