अनुभूति में
केदारनाथ अग्रवाल की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
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अन्य रचनाएँ-
आओ बैठो
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वह उदास दिन
हे मेरी तुम
संकलन में-
वसंती हवा-
वसंती हवा
ज्योति पर्व-
लघुदीप
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वह उदास दिन
वह उदास दिन
पेंशन पाए चपरासी-सा,
और जुए में हारे जन-सा,
आपे में खोए गदहे-सा,
मौन खड़ा है।
रवि रोता है
माँ से बिछुड़े हुए पुत्र-सा।
धूप पड़ी है
परित्यक्त पत्नी-सी कातर।
पाँव कटाए
हवा लढ़ी पर लेटे-लेटे,
धीरे-धीरे
अस्पताल की ओर चली है,
सुबुक रही है!
एक टांग पर खड़े,
देह का भार उठाए,
ऊँचे-ऊँचे पेड़ पुरातन
वनस्थली में तप करते हैं
जटा बढ़ाए।
२२ दिसंबर २००८ |