अनुभूति में
केदारनाथ अग्रवाल की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
गई बिजली
पाँव हैं पाँव
बुलंद है हौसला
बूढ़ा पेड़
अन्य रचनाएँ-
आओ बैठो
आग लगे इस राम-राज में
आदमी की तरह
एक हथौड़े वाला घर में और हुआ!
घर के बाहर
दुख ने मुझको
पहला पानी
बैठा हूँ इस केन किनारे
वह उदास दिन
हे मेरी तुम
संकलन में-
वसंती हवा-
वसंती हवा
ज्योति पर्व-
लघुदीप
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घर के बाहर
घर के बाहर खड़ी नीम की हरियाली पर
बैठे कौए आकर यहाँ शाम से पहले
एक साथ ही काँव-काँव करते हैं कर्कश
शान्ति भंग होती है उनके
कोलाहल से
वातावरण फटा रहता है ज़ोर-जबर से
और नगर के अधिकाधिक आवारा गदहे
गला फाड़ कर फेंक रहे हैं बम के गोले
आबादी घायल होती है तन की, मन की
अस्ताचल में मर जाता है कवि का सूरज;
मृत सन्नाटा छा जाता है अन्धकार का ।
इस मरने में भी हँसना पड़ता है मुझ को
कर्म आदमी का करना पड़ता है मुझ को ।
२२ दिसंबर २००८ |