अनुभूति में
केदारनाथ अग्रवाल की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
गई बिजली
पाँव हैं पाँव
बुलंद है हौसला
बूढ़ा पेड़
अन्य रचनाएँ-
आओ बैठो
आग लगे इस राम-राज में
आदमी की तरह
एक हथौड़े वाला घर में और हुआ!
घर के बाहर
दुख ने मुझको
पहला पानी
बैठा हूँ इस केन किनारे
वह उदास दिन
हे मेरी तुम
संकलन में-
वसंती हवा-
वसंती हवा
ज्योति पर्व-
लघुदीप
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पहला पानी
पहला पानी गिरा गगन से
उमड़ा आतुर प्यार,
हवा हुई, ठंढे दिमाग के जैसे खुले विचार।
भीगी भूमि-भवानी, भीगी समय-सिंह की देह,
भीगा अनभीगे अंगों की
अमराई का नेह
पात-पात की पाती भीगी-पेड़-पेड़ की डाल,
भीगी-भीगी बल खाती है
गैल-छैल की चाल।
प्राण-प्राणमय हुआ परेवा, भीतर बैठा, जीव,
भोग रहा है
द्रवीभूत प्राकृत आनंद अतीव।
रूप-सिंधु की
लहरें उठती,
खुल-खुल जाते अंग,
परस-परस
घुल-मिल जाते हैं
उनके-मेरे रंग।
नाच-नाच
उठती है दामिने
चिहुँक-चिहुँक चहुँ ओर
वर्षा-मंगल की ऐसी है भीगी रसमय भोर।
मैं भीगा,
मेरे भीतर का भीगा ग्रंथिल ज्ञान,
भावों की भाषा गाती है
जग जीवन का गान।
२२ दिसंबर २००८ |