केदारनाथ
अग्रवाल
१ अप्रैल १९११ को
जन्मे केदारनाथ अग्रवाल प्रगतिशील काव्य-धारा के एक प्रमुख कवि
हैं। उनका पहला काव्य-संग्रह युग की गंगा आज़ादी के पहले मार्च,
१९४७
में प्रकाशित हुआ। हिंदी साहित्य
के इतिहास को समझने के लिए यह संग्रह एक बहुमूल्य दस्तावेज़ है।
केदारनाथ अग्रवाल ने मार्क्सवादी दर्शन को जीवन का आधार मानकर
जनसाधारण के जीवन की गहरी व व्यापक संवेदना को अपने कवियों में
मुखरित किया है। कवि केदार की जनवादी लेखनी पूर्णरूपेण भारत की
सोंधी मिट्टी की देन है। इसीलिए इनकी कविताओं में भारत की धरती
की सुगंध और आस्था का स्वर मिलता है।
केदारनाथ अग्रवाल की कविताओं का अनुवाद रूसी, जर्मन, चेक और
अंग्रेज़ी में हुआ है। उनके कविता-संग्रह 'फूल नहीं, रंग बोलते
हैं', सोवियतलैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित हो चुका है :
केदारनाथ अग्रवाल के प्रमुख कविता संग्रह है :
युग की गंगा, फूल नहीं, रंग बोलते हैं, गुलमेंहदी,
हे मेरी तुम!, बोलेबोल अबोल, जमुन जल तुम, कहें
केदार खरी खरी, मार प्यार की थापें आदि।
उनका देहावसान २२
जून २००० को हुआ।
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अनुभूति में
केदारनाथ अग्रवाल की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
गई बिजली
पाँव हैं पाँव
बुलंद है हौसला
बूढ़ा पेड़
अन्य रचनाएँ-
आओ बैठो
आग लगे इस राम-राज में
आदमी की तरह
एक हथौड़े वाला घर में और हुआ!
घर के बाहर
दुख ने मुझको
पहला पानी
बैठा हूँ इस केन किनारे
वह उदास दिन
हे मेरी तुम
संकलन में-
वसंती हवा-
वसंती हवा
ज्योति पर्व-
लघुदीप
होली है-
फूलों की
होली
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