अनुभूति में
केदारनाथ अग्रवाल की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
गई बिजली
पाँव हैं पाँव
बुलंद है हौसला
बूढ़ा पेड़
अन्य रचनाएँ-
आओ बैठो
आग लगे इस राम-राज में
आदमी की तरह
एक हथौड़े वाला घर में और हुआ!
घर के बाहर
दुख ने मुझको
पहला पानी
बैठा हूँ इस केन किनारे
वह उदास दिन
हे मेरी तुम
संकलन में-
वसंती हवा-
वसंती हवा
ज्योति पर्व-
लघुदीप
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बूढ़ा पेड़
हाड़-माँस का
मैं हूँ बूढ़ा पेड़
मैं हूँ अब भी
प्राणवंत जीवंत।
मेरी भाषा की शाखाएँ
अब भी
रुचिकर रचनाओं के रूप में
कविताएँ देती रहती हैं
और मौसमी
गंध बाँटती रहती हैं।
पूर्ण प्रहर्षित-
पूर्ण प्रफुल्लित
मैं जीता हूँ एक-एक क्षण
क्षुब्ध नहीं होता हूँ मैं अब भी।
१६ नवंबर २००९ |