अनुभूति में
केदारनाथ अग्रवाल की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
गई बिजली
पाँव हैं पाँव
बुलंद है हौसला
बूढ़ा पेड़
अन्य रचनाएँ-
आओ बैठो
आग लगे इस राम-राज में
आदमी की तरह
एक हथौड़े वाला घर में और हुआ!
घर के बाहर
दुख ने मुझको
पहला पानी
बैठा हूँ इस केन किनारे
वह उदास दिन
हे मेरी तुम
संकलन में-
वसंती हवा-
वसंती हवा
ज्योति पर्व-
लघुदीप
|
|
आदमी की तरह
चम्मचों से नहीं
आकंठ डूब कर पिया जाता है
दुख को दुख की नदी में
और तब जिया जाता है
आदमी की तरह, आदमी के साथ
आदमी के लिए
रेत मैं हूँ जमुन-जल तुम!
मुझे तुमने
ह्रदय तल से ढँक लिया है
और अपना कर लिया है
अब मुझे क्या रात क्या दिन
क्या प्रलय- क्या पुनर्जीवन!
रेत मे हूँ जमुन-जल तुम!
मुझे तुमने
सरस रस से कर दिया है
छाप दुख-दव हर लिया है
अब मुझे क्या शोक- क्या दुख,
मिल रहा है सुख- महासुख!
२२ दिसंबर २००८ |