अनुभूति में
केदारनाथ अग्रवाल की रचनाएँ-
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अन्य रचनाएँ-
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संकलन में-
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वसंती हवा
ज्योति पर्व-
लघुदीप
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आओ बैठो इसी रेत
पर हे मेरी तुम
सब चलता है
लोकतंत्र में,
चाकू-जूता-मुक्का-मूसल
और बहाना।
हे मेरी तुम!
भूल-भटक कर भ्रम फैलाए,
गलत दिशा में
दौड़ रहा है बुरा ज़माना।
हे मेरी तुम!
खेल-खेल में खेल न जीते,
जीवन के दिन रीते बीते,
हारे बाजी लगातार हम,
अपनी गोट नहीं पक पाई,
मात मुहब्बत ने भी खाई।
हे मेरी तुम!
आओ बैठो इसी रेत पर,
हमने-तुमने जिस पर चल कर
उमर गँवाई।
२२ दिसंबर २००८ |