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  आओ बैठो इसी रेत पर

हे मेरी तुम
सब चलता है

लोकतंत्र में,
चाकू-जूता-मुक्का-मूसल
और बहाना।
हे मेरी तुम!
भूल-भटक कर भ्रम फैलाए,
गलत दिशा में
दौड़ रहा है बुरा ज़माना।
हे मेरी तुम!
खेल-खेल में खेल न जीते,
जीवन के दिन रीते बीते,
हारे बाजी लगातार हम,
अपनी गोट नहीं पक पाई,
मात मुहब्बत ने भी खाई।

हे मेरी तुम!
आओ बैठो इसी रेत पर,
हमने-तुमने जिस पर चल कर
उमर गँवाई।

२२ दिसंबर २००८

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