अनुभूति में
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वसंती हवा
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लघुदीप
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हे मेरी तुम
हे मेरी तुम।
यह जो लाल गुलाब खिला है
खिला करेगा
यह जो रूप अपार हँसा है,
हँसा करेगा
यह जो प्रेम-पराग उड़ा है,
उड़ा करेगा
धरती का उर रूप-प्रेम-मधु
पिया करेगा।
हे मेरी तुम।
यह जो खंडित स्वप्न-मूर्ति है,
मुसकाएगी
रस के निर्झर, मधु की वर्षा,
बरसाएगी
जीवन का संगीत सुना कर,
इठलाएगी
धरती के ओठों में चुंबन
भर जाएगी।
हे मेरी तुम!
काली मिट्टी हल से जोतो,
बीज खिलाओ
खून पसीना पानी सींचो
प्यास बुझाओ
महाशक्ति की नमी फसल का,
अन्न उगाओ
धरती के जीवन-सत्ता की,
भूख मिटाओ।
२२ दिसंबर २००८ |