अनुभूति में
केदारनाथ अग्रवाल की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
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अन्य रचनाएँ-
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संकलन में-
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वसंती हवा
ज्योति पर्व-
लघुदीप
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बुलंद है हौसला
बुलंद है हौसला
जीवंत जीने का
इस बुढ़ापे में।
दुर्लभ देह को
अब भी
सँभाले हैं
हड्डियाँ और माँसपेशियाँ।
न सही बलीन
अवलीन
भी नहीं हूँ
कि ढह जाऊँ
ढेर हो जाऊँ
न मैं रहूँ मैं
न पृथ्वी रहे मेरे लिए
न मैं रहूँ पृथ्वी के लिए।
१६ नवंबर २००९ |