अनुभूति में केदारनाथ अग्रवाल की रचनाएँ-
नई रचनाओं में- गई बिजली पाँव हैं पाँव बुलंद है हौसला बूढ़ा पेड़
अन्य रचनाएँ- आओ बैठो आग लगे इस राम-राज में आदमी की तरह एक हथौड़े वाला घर में और हुआ! घर के बाहर दुख ने मुझको पहला पानी बैठा हूँ इस केन किनारे वह उदास दिन हे मेरी तुम
संकलन में- वसंती हवा- वसंती हवा ज्योति पर्व- लघुदीप
दुख ने मुझको जब जब तोड़ा,
मैंने अपने टूटेपन को कविता की ममता से जोड़ा,
जहाँ गिरा मैं, कविताओं ने मुझे उठाया, हम दोनों ने वहाँ प्रात का सूर्य उगाया।
२२ दिसंबर २००८
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