अनुभूति में
रामकृष्ण द्विवेदी 'मधुकर'
की रचनाएँ—
अंजुमन में-
उफनाए नद की कश्ती
बढ़ाया प्रेम क्यों इतना
शिक्षा का संधान चाहिये
गीतों में-
बादल गीत
मोर पिया अब मुझसे रीझे
छंदमुक्त में—
किरन
जलकोश
जीवन सूक्त
दृष्टि
देखा है
नारी
प्रभात: दो रंग
पाँच छोटी कविताएँ
बुलबुला
साम्यावस्था
सावन
संकलन में-
हुए क्यों पलाश रंग रंगत विहीन
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उफनाए नद की
कश्ती
उफनाए नद की कश्ती सम बहे जा रहे हैं
नहीं पता पतवार फेंक हम
कहाँ जा रहे हैं
इतना जगमग
बाहर दिखता घर की ज्योति पड़ी फीकी
घर के शब्दों को चुप करके सुनी सदा बाहर ही की
जो मन में आया हम उसको
कहे जा रहे हैं
अपने स्वर्ण-
कलश को हमने पटक दिया धरती ऊपर
बाहर के मल अपशिष्टों का तिलक लगाया माथे पर
त्याग मृदुल गंगा जल हम विष
पिये जा रहे हैं
जब तक वह थी
अपने घर में हमने कदर नहीं जानी
मिली विदेशी लेबल में जब की हमने खींचातानी
देख महल जर्जर खंडहर सम
ढहे जा रहे हैं
गहन रखा
हमने विवेक को बुद्धि टाँग दी खूँटी
पर
किन चीज़ों की हमें ज़रूरत नहीं नियंत्रण है उस पर
बनकर भेड़, भेड़ के पीछे चले जा रहे हैं
१ नवंबर २००६
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