अनुभूति में
रामकृष्ण द्विवेदी 'मधुकर'
की रचनाएँ—
अंजुमन में-
उफनाए नद की कश्ती
बढ़ाया प्रेम क्यों इतना
शिक्षा का संधान चाहिये
गीतों में-
बादल गीत
मोर पिया अब मुझसे रीझे
छंदमुक्त में—
किरन
जलकोश
जीवन सूक्त
दृष्टि
देखा है
नारी
प्रभात: दो रंग
पाँच छोटी कविताएँ
बुलबुला
साम्यावस्था
सावन
संकलन में-
हुए क्यों पलाश रंग रंगत विहीन
|
|
पाँच छोटी कविताएँ
चेतना
कब आएगा सूरज
कब देगा आलंबन
क्या तब तक
हम हाथ बांधकर पड़े रहें
नहीं
चलो
छोटा सा ही सही
स्वयं के अंतस में
एक दिया जलाएँ
ऊर्जित उन्मुक्त अखंड अनाविल
तब शायद
हम ही वह
वह सूरज बन जाएँ
आदमी
सागर की अथाह गहराई में
एक विशालकाय मछली को देख
छोटी मछलियाँ
आत्म रक्षा में भागते हुए
जल सतह पर आ गईं
बड़ी मछलियों से तो वह बच गईं
पर अधिकाँश
ऊपर मँडराते पक्षियों का शिकार बन गईं
परंतु जो भाग्यशाली
पक्षियों से भी बची रहीं
वे
आदमी के जाल में फँस गईं
ठूँठ
उग आईं हैं झाड़ियाँ
ठूँठ से पेड़
बहुतायत
धरती की छाती पर
जिनमें
न हरियाली
न छाया
न पुष्प
और न ही फल
है कुछ
तो सिर्फ़ काँटे
काँटे ही काँटे
उनके बदन पर
और आसपास
सन्यास
कुछ विमाहीन बिंदु
तो कुछ एकल विमीय रेखाएँ
कुछ द्विविमीय बहुभुज वृत्त
तो कुछ त्रिाविमीय गोले
जब यही क्रम बढ़ते–बढ़ते
असंख्य विमीय ब्रह्मांड बन जाता है
तो सब शून्य हो जाता है
जो सन्यास कहलाता है
अवसर
ले लो दूध
ले लो दूध बच्चों के लिए
डेढ़ सौ रुपये किलो
कुछ दूर गए
तो फिर सुनाई दिया
ले लो दूध
ले लो दूध
बीस रुपये किलो
और आगे बढ़ने पर
फिर सुनाई दिया
ले लो दूध
पी लो दूध
पौंसला खुला है
पंद्रह दिन डूबे रहने के बाद
शहर का पानी उतरा था
१ नवंबर २००६
|