अनुभूति में
रामकृष्ण द्विवेदी 'मधुकर'
की रचनाएँ—
अंजुमन में-
उफनाए नद की कश्ती
बढ़ाया प्रेम क्यों इतना
शिक्षा का संधान चाहिये
गीतों में-
बादल गीत
मोर पिया अब मुझसे रीझे
छंदमुक्त में—
किरन
जलकोश
जीवन सूक्त
दृष्टि
देखा है
नारी
प्रभात: दो रंग
पाँच छोटी कविताएँ
बुलबुला
साम्यावस्था
सावन
संकलन में-
हुए क्यों पलाश रंग रंगत विहीन
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नारी
तुम श्रद्धा हो तुम करुणा हो
तुम जगदंबा कल्याणी हो
तुम अंतहीन हो स्रोत स्नेह का
तुम दुर्गा लक्ष्मी वाणी हो
तुम्हीं शक्ति हो जड़ चेतन की
तुम्हीं भक्ति हो अवचेतन की
तुम संचालक इस विराट की
तुम ही हो प्रशस्ति तन मन की
तुम उदगम हो जीवन सरि का
तुम ही वह अविरल धारा हो
तुम ही हो श्रृंगार प्रकृति का
तुम अंतर्मन की वाणी हो
तुमने ही है हाथ पकड़कर
जग को चलना सिखलाया
भोर हुई तो उसे जगाकर
तुमने राग भैरवी गाया
तुमने अपनी मधुर प्रेरणा
से फूलों को महकाया
देख तुम्हीं को प्राची क्षिति में
सूरज नयी रोशनी लाया
शून्य क्षितिज पर भटक रही
उन लहरों को मिल गया किनारा
खिले कमलदल चहके पंछी
पाकर के स्पर्श तुम्हारा
१६ मार्च २००६
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