अनुभूति में
रामकृष्ण द्विवेदी 'मधुकर'
की रचनाएँ—
अंजुमन में-
उफनाए नद की कश्ती
बढ़ाया प्रेम क्यों इतना
शिक्षा का संधान चाहिये
गीतों में-
बादल गीत
मोर पिया अब मुझसे रीझे
छंदमुक्त में—
किरन
जलकोश
जीवन सूक्त
दृष्टि
देखा है
नारी
प्रभात: दो रंग
पाँच छोटी कविताएँ
बुलबुला
साम्यावस्था
सावन
संकलन में-
हुए क्यों पलाश रंग रंगत विहीन
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बादल गीत
घुमड़–घुमड़ घनघोर
मचा दे सूने नभ में शोर
कि अब
हे काले बादल
बरस–बरस मतवाले पागल
पृथ्वी का हर कण–कण
शिखरों के हर तृण–तृण
जीव लोक के तीनों चर
और वृक्षों के हर पण–पण
करते त्राहि–त्राहि
जल हेतु सभी हैं व्याकुल
कि अब
हे काले बादल
बरस–बरस मतवाले पागल
क्या सूख गया तेरा उद्गम
जो आए रीते घट लेकर
वो घटा साथ भी न लाए
जो पुलकित करती बरस–बरस कर
किस घाटी में खो आए
अपनी रंगत श्यामल–श्यामल
कि अब
हे काले बादल
बरस–बरस मतवाले पागल
विकल शावकों के आँखों से प्यास छलकती
चूल्हे की लौ आज सभी हृदयों में जलती
बैलों के घुँघरू घंटी की मौन व्यथा को
खेतों से उड़ धूल आज उपहासित करती
बीते दिन की बात हो चुके
हरे भरे फसलों के जंगल
कि अब
हे काले बादल
बरस–बरस मतवाले पागल
१६ मार्च २००६
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