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अनुभूति में रामकृष्ण द्विवेदी 'मधुकर' की रचनाएँ—

अंजुमन में-
उफनाए नद की कश्ती
बढ़ाया प्रेम क्यों इतना

शिक्षा का संधान चाहिये

गीतों में-
बादल गीत

मोर पिया अब मुझसे रीझे

छंदमुक्त में—
किरन
जलकोश
जीवन सूक्त
दृष्टि
देखा है
नारी
प्रभात: दो रंग
पाँच छोटी कविताएँ
बुलबुला
साम्यावस्था
सावन

संकलन में-
हुए क्यों पलाश रंग रंगत विहीन

 

शिक्षा का संधान चाहिये

तम को जगमग
करने वाली शिक्षा का संधान चाहिये
सुप्त हृदय में ज्योति जले यह जन–जन को
वरदान चाहिये

सब उर
हो जाएँ आलोकित, तान शिखा से रहें सुशोभित
तार–तार को कर दे झंकृत ऐसा वर वित्तान चाहिये


जीवन हिम
सदृश धवल हो मन बुद्धि विवेक विमल हो
आचार विचार नवल हो ऐसा अनुसंधान चाहिये


युग–युग से
मुरझे मानस को नीरवता मय शून्य क्षितिज को
तान रश्मि से दीप्त अलंकृत मुस्काती मुस्कान चाहिये

फूलों में
भर दे सुगंधि जो मधु ऋतु को मादकता दे दे
पावस की हरियाली जैसा प्रमुदित वर्तमान चाहिये

सघन तिमिर में
रहे भटकते शोशित पीड़ित पशुवत जन के
सोये उर को जागृत कर दे ऐसा सुर संग्राम चाहिये
तम को जगमग करने वाली शिक्षा का संधान चाहिये

१ नवंबर २००६

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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