अनुभूति में हरिहर झा की रचनाएँ—
नयी रचनाओं
में-
मेरे पिता
तेरे बोल
इस शहर में भी
अविनाशी
विसंगति
गीतों में-
न इतना शरमाओ
पतझड़
प्रिये तुम्हारी याद
छंदमुक्त
में-
चुप हूँ
न जाने क्यों
रावण और राम
संकलन में—
ज्योतिपर्व–
अंतर्ज्योति
शुभ दीपावली-
धरा पर गगन
ममतामयी-
माँ की
याद
शरद महोत्सव हाइकु में-
बर्फ के लड्डू
नया साल-
साल मुबारक
वर्षा मंगल-
रिमझिम यह बरसात
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विसंगति
भूखे श्वान गुर्राते हैं
चाँद चुपचाप खिसकने लगा हैं
इस शहर मे
कुछ लाशें जिन्दा इंसानो को
दफनाती हैं
कुर्सियाँ इंसानों की गर्दन पर बैठ कर
शान से अकड़ती है।
समझ मे नहीं आता
क्यों लगाई है लगाम
खिलते फूलों शाखों पत्तियों पर
क्यों?
मेरी क्षुब्ध आत्मा तड़पती है
चिल्लाती है मेरी
फड़फड़ाती हुई आवाज।
जवाब में
नोच न पाने की पीड़ा से
व्यथित हो कर
भूखे श्वान
मुझे
संडासे से पकड़ कर
श्वानवाहन मे धकेल कर
दूर जंगल मे छोड़ आते हैं।
१ मई २०२२
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