अनुभूति में हरिहर झा की रचनाएँ—
गीतों में-
न इतना शरमाओ
पतझड़
प्रिये तुम्हारी याद
अंजुमन में-
चुप हूँ
छंदमुक्त
में-
न जाने क्यों
रावण और राम
संकलन में—
ज्योतिपर्व–
अंतर्ज्योति
शुभ दीपावली-
धरा पर गगन
ममतामयी-
माँ की
याद
शरद महोत्सव हाइकु में-
बर्फ के लड्डू
नया साल-
साल मुबारक
वर्षा मंगल-
रिमझिम यह बरसात
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चुप हूँ
खुल कर रोया था जनमने के बाद
हालात अब ये है कि बरसों से चुप हूँ।
अंदाज़े–बयां था कातिल का जुर्म किसका है
सामने उसके उसका नाम लेने से मैं चुप हूँ।
भूखा पेट मेरा और डकार लेने को कहा
चूहा पेट का न दिख जाय इसलिए मै चुप हूँ।
सोचा था हँस हँस कर पियेंगे ग़म के आँसू
सैलाब ग़म का आया इसलिए मैं चुप हूँ।
दिल से दरिया–ए–इश्क बहा देने के बाद
कहा कि अब अश्क बहा इसलिए मैं चुप हूँ।
घाव पर मलहम के बदले नमक छिड़का
ये भी क्या कम है खुदा कि मैं चुप हूँ।
गुनाह बहाना बना नए गुनाह करने को
फँसा दलदल मे पर ये तमाशा कि मैं चुप हूँ।
क्या बोलूँ जब पूछा खुदा ने गुनाहों का सच
सच केवल इतना ही कि तू पूछे और मैं चुप हूँ।
१ फरवरी २००५
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