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अनुभूति में हरिहर झा की रचनाएँ—

गीतों में-
न इतना शरमाओ
पतझड़

प्रिये तुम्हारी याद

अंजुमन में-
चुप हू

छंदमुक्त में-
न जाने क्यों
रावण और राम

संकलन में—
ज्योतिपर्व– अंतर्ज्योति
शुभ दीपावली- धरा पर गगन
ममतामयी- माँ की याद
शरद महोत्सव हाइकु में- बर्फ के लड्डू
नया साल- साल मुबारक
वर्षा मंगल- रिमझिम यह बरसात

 

न जाने क्यों

न जाने क्यों
भूख से कराहते बालक को देख कर
न जाने क्यों
मेरे हाथ
उसे रोटी देने के बदले
दार्शनिक गुत्थी में उलझ गये
कि भूख क्या है और दुख क्या
शरीर क्या है और आत्मा क्या ?
निरीह अबला को
घसीट कर ले जाते देख कर
न जाने क्यों मेरी आँखे
उस दो हड्डियों वाले पापी को
शर्म से डुबाने के बदले
विचार में खो गई कि यहाँ
मजबूर कौन है और अपराधी कौन
प्यार क्या है और वासना क्या ?
साम्प्रदायिक दंगे में
जिन्दा छुरियों और कराहती लाशों के बीच
चीत्कार सुनने के बदले
न जाने क्यों मेरे कान
दुनियादारी का नाम देकर
ओछेपन की दलदल में उतर गये
यहाँ हिन्दू कौन है और मुसलमान कौन
अपना कौन है और पराया कौन ?
बांध का छेद बुदबुदाते देख
न जाने क्यों
मेरे पग
सुप्त तत्रिंयो और ऊंघते दरवाजों को
भड़भड़ाने के लिये
भागने के बदले
विप्लव के आह्वान में डूब कर
प्रलय की कल्पना करने लगे
कि अब
मनु कौन है और कामायनी कौन
सृष्टि क्या है और वृष्टि क्या ?
न जाने क्यों
क्यों और क्यों
मेरे आँख कान हाथ पग
सब के सब दिमाग हो गये हैं
और दिमाग ?
इन धूर्त बाजीगरों की कठपुतली।


१ फरवरी २००५

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