अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में हरिहर झा की रचनाएँ—

गीतों में-
न इतना शरमाओ
पतझड़

प्रिये तुम्हारी याद

अंजुमन में-
चुप हू

छंदमुक्त में-
न जाने क्यों
रावण और राम

संकलन में—
ज्योतिपर्व– अंतर्ज्योति
शुभ दीपावली- धरा पर गगन
ममतामयी- माँ की याद
शरद महोत्सव हाइकु में- बर्फ के लड्डू
नया साल- साल मुबारक
वर्षा मंगल- रिमझिम यह बरसात

 

पतझड़

आँसू में डूबी वीणा ले मधुर गीत मैं कैसे गाता
बचपन मेरा सूखा पतझड़ हरियाली मैं कैसे लाता

खेल–कूद सब बेच दिया बस दो पैसों के खातिर
बहा पसीना थका खून खाने को तरस गया फिर
गिरवी रख कर बचपन मजदूरी से जोड़ा नाता
शाला कैसे जा पाता जब रूठा हाय! विधाता

तरस गया देह ढँकने को यूनिफार्म कहाँ से लाता
बचपन मेरा सूखा पतझड़ हरियाली मैं कैसे लाता

बस्ता लिये चला स्कूल मैं सपना ऐसा देखा
सोने के मेडल से चमकी अरे! भाग्य की रेखा
दिनभर शरीर झुलसाने के झगड़े हो गये दूर
भोंपू बजा कान में मेरे सपने हो गये चूर

कैसे भूखा रह कर खर्चा फीस किताबों का कर पाता
बचपन मेरा सूखा पतझड़ हरियाली मैं कैसे लाता

किस्मत ऐसी कहाँ कि हँस कर किलकारी मैं भरता
रोज बाप की गाली खाकर पिट जाने से डरता
कैसे अपने आँसू पोछूँ नरक बना यह जीवन
गुमसुम सोच न पाता कैसे दुख झेले यह तन–मन

माँ बूढ़ी बीमार खाट पर उसे खिलाता क्या मैं खाता
बचपन मेरा सूखा पतझड़ हरियाली मैं कैसे लाता।

१ जून २००५

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter