अनुभूति में हरिहर झा की रचनाएँ—
गीतों में-
न इतना शरमाओ
पतझड़
प्रिये तुम्हारी याद
अंजुमन में-
चुप हूँ
छंदमुक्त
में-
न जाने क्यों
रावण और राम
संकलन में—
ज्योतिपर्व–
अंतर्ज्योति
शुभ दीपावली-
धरा पर गगन
ममतामयी-
माँ की
याद
शरद महोत्सव हाइकु में-
बर्फ के लड्डू
नया साल-
साल मुबारक
वर्षा मंगल-
रिमझिम यह बरसात
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रावण और राम
अमरत्व की आकांक्षा से लथपथ रावण
कांचन कामिनी के पीछे भागता
अहं –
जो धुएँ की लकीर
उसे बचाने के लिये भागता
रंगोली को मिट्टी समझ
मिटा देता यहाँ–वहाँ
दस मुखों वाली पहचान –
बेचारा छुपाएगा कहाँ?
घबराता सूर्य से
उसे जीत लेने का दंभ भरता
झूठी तसल्ली के लिए
उसका दास की गिनती में आवाहन करता
कलुषित भाव कुछ दे न पाया
पर झनकती तमन्ना सिर निकालती
खुजला–खुजला कर पीड़ा को
सुख पाने की इच्छा पालती
मृगतृष्णा का छोर न मिला
पाप पुण्य से कैसे लड़े?
सिंहासन डगमगाने लगा
मृत्यु के देव सामने खड़े
तो छोड़ कर अपनी काया
ज़मीर के कण बिखेरता हुआ
घुलमिल गया हम सब की अस्थि–मज्जा में
नख–शिख तक वही लंकेश
अपनी पूरी साज–सज्जा में
बस, अब मन का राम
मुदित, सुरक्षित
साथ में रावण
तो अब फिर से
अयोध्या का राज छोड़ कर
राम जंगल नहीं माँगेगा
धोबी के कहने पर
सीता को नहीं त्यागेगा
लो, वृत्तियों की वानर–सेना को मिला
लंका–दहन का काम
अब भीतर ही भीतर लड़ लेंगे
रावण और राम।
१६ अक्तूबर २००६
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