अनुभूति में हरिहर झा की रचनाएँ—
गीतों में-
न इतना शरमाओ
पतझड़
प्रिये तुम्हारी याद
अंजुमन में-
चुप हूँ
छंदमुक्त
में-
न जाने क्यों
रावण और राम
संकलन में—
ज्योतिपर्व–
अंतर्ज्योति
शुभ दीपावली-
धरा पर गगन
ममतामयी-
माँ की
याद
शरद महोत्सव हाइकु में-
बर्फ के लड्डू
नया साल-
साल मुबारक
वर्षा मंगल-
रिमझिम यह बरसात
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न इतना शरमाओ
मधुर मिलन की दो घड़ियों में
प्रिये न इतना शरमाओ
उषा की लाली लज्जित हो
घनमाला में छिप जाए
छलक उठी नैनों की मदिरा
बह जाने के लिये नहीं है
मुस्कानों में फूल महकते
मुर्झाने के लिये नहीं हैं
युवा उमंगों की यह सरिता
थम जाने के लिये नहीं है
खिली कली या मादक यौवन
संकुचाने के लिये नहीं है
इतराओ रूठो मुस्काओ पर
इतना मत शरमाओ
उषा की लाली लज्जित हो
घनमाला में छिप जाए
इंद्रधनुषी मुद्राएँ
घट घट में खेलीं किसने जानीं
प्रीत की लहरें मन ही मन
उठीं भला किसने पहचानीं
अल्हड़ यौवनकी अल्हड़ता
मादकता किसने पहचानी
नहीं गुदगुदाता कोकिल स्वर
बोलो बगिया की रानी
मदमाती मत पलकें मूँदो
यों इतनी मत शरमाओ
उषा की लाली लज्जित हो
घनमाला में छिप जाए
१ फरवरी २००५
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