अनुभूति में हरिहर झा की रचनाएँ—
नयी रचनाओं
में-
मेरे पिता
तेरे बोल
इस शहर में भी
अविनाशी
विसंगति
गीतों में-
न इतना शरमाओ
पतझड़
प्रिये तुम्हारी याद
छंदमुक्त
में-
चुप हूँ
न जाने क्यों
रावण और राम
संकलन में—
ज्योतिपर्व–
अंतर्ज्योति
शुभ दीपावली-
धरा पर गगन
ममतामयी-
माँ की
याद
शरद महोत्सव हाइकु में-
बर्फ के लड्डू
नया साल-
साल मुबारक
वर्षा मंगल-
रिमझिम यह बरसात
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अविनाशी
कहते हैं वैज्ञानिक
परमाणु हो या नक्षत्र
कोई भी
बनाता न खोता
अविनाशी स्वरूप
उस पदार्थ या उर्जा को।
सागर और बादल
वही चक्र वही लूप
पानी केवल बदलता है
स्थान और रूप
तभी तो
आतंककारी के
कठोर हदय से वाष्पिभूत जल
बना है बेबस की आँखों मे आँसू।
कोलम्बस की खोज अमेरिका
मै यहाँ भी खोजता
दया और करूणा
जो थी और अब गुप्त
संवेदनाएँ
इस दुनिया से
हो चली हैं लुप्त
वही द्रव्य बाढ़ बन कर
झरने बन कर
खुशी से उछलता मस्त चाल
दुनिया कहती नाइग्रा फॉल।
दहशत मजबूरी संत्रास के घेरे
भूख गरीबी अशिक्षा के अँधेरे
कहाँ गया प्रकाश?
क्या उर्जा का हुआ नाश?
नहीं
मुस्कान की एक एक किरण
द्रौपदी बन कर
करती जुए में
दुर्योधन का वरण
चमक दमक से इठलाती
केसिनो पर बिकती
तकदीर बनी
ताश के पत्तों और
घूमते पहियों की दास
लोग कहते है लास वेगास।
बस्ते के बोझ से
थक कर चूर
शिशु बना बँधुआ मजदूर
कहाँ गई संग्रहित उर्जा
यहाँ वहाँ सब टटोला
तो पाया
कि खुशियों का उड़नखटोला
जो बना फ्लाइंग बर्ड
लोग कहते हैं डिजनी वर्ल्ड।
१ मई २०२२
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