अनुभूति में हरिहर झा की रचनाएँ—
नयी रचनाओं
में-
मेरे पिता
तेरे बोल
इस शहर में भी
अविनाशी
विसंगति
गीतों में-
न इतना शरमाओ
पतझड़
प्रिये तुम्हारी याद
छंदमुक्त
में-
चुप हूँ
न जाने क्यों
रावण और राम
संकलन में—
ज्योतिपर्व–
अंतर्ज्योति
शुभ दीपावली-
धरा पर गगन
ममतामयी-
माँ की
याद
शरद महोत्सव हाइकु में-
बर्फ के लड्डू
नया साल-
साल मुबारक
वर्षा मंगल-
रिमझिम यह बरसात
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तेरे बोल
तेरे बोल से निकले तूफ़ानों ने
ऊधम मचाए बहुत
मुँह फुलाकर
जहाँ से मुड़ गई
उजली चाँदनी
लम्बे केशों सी
स्याह पड़ गई
तू कल ही तो
बतिया रही थी
खूसट ऐरेगैरों से
और खिल उठी थी मेरे
मन की मुरझाई लता
जब तूने बीच में ही मोड़ दी
शीतल धार मेरी ओर
कितनी मनुहार भरी!
कलकल नदी सी बहती
जिसके उपर
तू उमंग में भर कर
फुदक रही थी
एक रंगीन चिड़िया की तरह
इन बाहों की सी
टहनियों पर
चेहरे पर चटकीले रंग देख कर
मैं मुस्काया, पुलकित भी हुआ
कि
फिर अचानक दो लाल वेषधारी
होंठों के पीछे से
बत्तीस की टीम का हुआ हमला
मेरे दिमाग की नसों को ऐसा दबोचा
कि झटका खा गई
हौसलों की दीवारें।
१ मई २०२२
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