अनुभूति में विजयेन्द्र विज की रचनाएँ-
नई कविताओं में- आड़ी तिरछी रेखाएँ ऋतुपर्णा तुम आज भी नहीं आयीं जुगनुओं अब तुम सितारे हो गए हो बेचैनी वृंदावन की विधवाएँ शब्द तुम कविताओं में- अक्सर, मौसमों की छत तले अगर किसी रोज अरसे के बाद आँखें एक और वैलेन्टाइन्स डे कभी वापस लौटेगी वो खोजो कि वो मिल जाए दस्तावेजों की दुनिया मुकर गए वो लोग रंग ज़िंदगी की तरह लाल बत्तियों में साँस लेता वक्त वह आवाज अक्सर मेरा पीछा करती है सोचता हूँ
हाँ हमीं तो थे तुम्हारे साथ-साथ तब भी और अब भी पहचानो हमें हम बदले नहीं वक्त ही बदल गया शायद हमने पल-पल इंतज़ार किया उसके वापस लौट आने का पर, उसने तो मुड़ कर भी नहीं देखा और चली गई बस चलती गई क्या कभी वापस लौटेगी वो
इस रचना पर अपने विचार लिखें दूसरों के विचार पढ़ें
अंजुमन। उपहार। काव्य चर्चा। काव्य संगम। किशोर कोना। गौरव ग्राम। गौरवग्रंथ। दोहे। रचनाएँ भेजें नई हवा। पाठकनामा। पुराने अंक। संकलन। हाइकु। हास्य व्यंग्य। क्षणिकाएँ। दिशांतर। समस्यापूर्ति
© सर्वाधिकार सुरक्षित अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है