अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में विजयेन्द्र विज की रचनाएँ-

नई कविताओं में-
आड़ी तिरछी रेखाएँ
ऋतुपर्णा तुम आज भी नहीं आयीं
जुगनुओं अब तुम सितारे हो गए हो
बेचैनी
वृंदावन की विधवाएँ
शब्द तुम


कविताओं में-
अक्सर, मौसमों की छत तले
अरसे के बाद
आँखें
एक और वैलेन्टाइन्स डे
कभी वापस लौटेगी वो
खोजो कि वो मिल जाए
दस्तावेजों की दुनिया
मुकर गए वो लोग
रंग ज़िंदगी की तरह
लाल बत्तियों में साँस लेता वक्
वह आवाज अक्सर मेरा पीछा करती है

सोचता हूँ

  एक और वैलेन्टाइन्स डे

एक और भी दिन गया
मुझे तनहा छोड़।
दे गया
कुछ धूमिल सी यादें
गुज़रे ज़माने की
जहाँ कुछ पत्र थे
तो कुछ प्रेम-पत्र
और कुछ,
किताबों के बीच दबे हुए फूल
फैली थी स्याही वहाँ
फूलों के दबाने से
और दे रही थी एक अजीब सी गंध।
पत्रों में शिकायतें थीं
तो प्रेम-पत्रों में ढेरों सवाल
धूमिल से, मलिन से
कुछ दे गए पल भर की खुशी
और कुछ,
एक कतरा आँसू
बस ऐसे ही उलझा रहा
सारा दिन और सारी रात
अपने अतीत से जुड़े
और बिखरे-सिमटे
सवालों के साथ
हाँ! कुछ ऐसे यादगार रहा
एक और वैलेन्टाइन्स डे

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter