अनुभूति में
श्रीकांत सक्सेना की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
इंतजार
कमीज
कि तुम बड़े हो
क्यों मन चाहता है
जिंदगी
मुझे नहीं मालूम
समूह का चक्रव्यूह
छंदमुक्त में-
जिन्दा हो
बाजार
बेटी
भीतर कोई है
सुबह खुल रही है फिर से
सुरक्षा
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जिंदगी
ज़िन्दगी
उठ,बेझिझक आँखों में आँखें डालकर तो देख
और अपने आग़ोश में जकड़ मुझको
नक़ाबों को हटा
और अपना चेहरा देखने तो दे
मैं जानूँ
तू पहेली है, अजूबा है, या फिर मस्ती की बेटी है
तू फैला ले सभी घेरे
ख़लाओं की ख़लाओं तक
तुझे तेरी हदों में और हदों के पार देखूँगा
तुझे ए ज़िन्दगी
मैं ज़िन्दगी के पार देखूँगा
लिहाज़ों के बहाने छोड़, मुँह मत फेर
और आँखें मिला मुझसे
तू अपने ख़ौफ़ और उन साज़िशों को आज़माकर देख
तेरी सब कोशिशों नाज़ो-अदा को आज देखूँगा
मैं तेरे बाँकपन के आज सब अंदाज़ देखूँगा
तुझे तेरी ही आँखों में उतर कर आज देखूँगा
३० जनवरी २०१२
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