अनुभूति में
श्रीकांत सक्सेना की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
इंतजार
कमीज
कि तुम बड़े हो
क्यों मन चाहता है
जिंदगी
मुझे नहीं मालूम
समूह का चक्रव्यूह
छंदमुक्त में-
जिन्दा हो
बाजार
बेटी
भीतर कोई है
सुबह खुल रही है फिर से
सुरक्षा
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क्यों मन चाहता है
क्यों मन चाहता है
हर वो चीज़
जिसपर हमारा अधिकार नहीं होता
क्यों हम करते हैं
इतना कुछ
पर वो प्यार नहीं होता
क्यों
जब आकाश से बरसती है खुशी
और खुली मुट्ठियों में भर लेती है गुड्डो
और हमारे हाथ ख़ाली रह जाते हैं
क्यों
बार-बार खटता है किसान
उम्मीद से तकता है आसमान
शायद इस बार कुछ हो
पर फ़सल का एक दान भी नहीं गिरता
दरअसल
वो जो थोड़ा सा कम है
वो जो थोड़ा सा अधूरा है
वो जो मुट्ठी में आते आते रह जाता है
वो जो ज़रा सा ख़ाली है
ज़िन्दगी है
३० जनवरी २०१२
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