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सुरक्षा
आकाश
हमारी खिड़की सा चौकोर
या फिर अपनी सुविधा के लिये ही
हम बना लेते है उसके छोर
अजीबो गरीब शक्लें बनाते बादल
गुजरते है हमारे सामने से मस्त
उतर आते है तारे
बहुत सारे
अक्सर चाँद के साथ
चाँद के बगैर भी
लुभाते, चिढ़ाते, निमन्त्रण देते
खेलोगे हमारे साथ?
खिड़की के इस ओर
खुद को सुरक्षित मानती आँखें
मनुहार सी करती, रुको ना थोडी देर
अच्छा कब आओगे?
हमारे बाबजूद
वे अपनी मरजी भर ठहरते है,
चल देते है
खिड़की के इस पार हम खुद को
कुछ और बन्द कर लेते है
५ सितंबर २०११
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