अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में श्रीकांत सक्सेना की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
इंतजार
कमीज
कि तुम बड़े हो
क्यों मन चाहता है
जिंदगी
मुझे नहीं मालूम
समूह का चक्रव्यूह

छंदमुक्त में-
जिन्दा हो
बाजार
बेटी
भीतर कोई है
सुबह खुल रही है फिर से
सुरक्षा

 

सुरक्षा

आकाश
हमारी खिड़की सा चौकोर
या फिर अपनी सुविधा के लिये ही
हम बना लेते है उसके छोर
अजीबो गरीब शक्लें बनाते बादल
गुजरते है हमारे सामने से मस्त
उतर आते है तारे
बहुत सारे
अक्सर चाँद के साथ
चाँद के बगैर भी
लुभाते, चिढ़ाते, निमन्त्रण देते
खेलोगे हमारे साथ?
खिड़की के इस ओर
खुद को सुरक्षित मानती आँखें
मनुहार सी करती, रुको ना थोडी देर
अच्छा कब आओगे?
हमारे बाबजूद
वे अपनी मरजी भर ठहरते है,
चल देते है
खिड़की के इस पार हम खुद को
कुछ और बन्द कर लेते है

५ सितंबर २०११

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter