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अनुभूति में श्रीकांत सक्सेना की रचनाएँ-

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इंतजार
कमीज
कि तुम बड़े हो
क्यों मन चाहता है
जिंदगी
मुझे नहीं मालूम
समूह का चक्रव्यूह

छंदमुक्त में-
जिन्दा हो
बाजार
बेटी
भीतर कोई है
सुबह खुल रही है फिर से
सुरक्षा

 

समूह का चक्रव्यूह

समूह का व्यूह
ख्वाबों को निहत्था कर देता है
परिंदों की उड़ानों को
डर से भर देता है

सोचने वाला दिमाग
जब सिर पटकता है
अना का शीशा
जब जब चटखता है
समूह मग्न होता है
चैन से सोता है
समूह
नहीं चाहता
कोई तोड़े अपने बंध
लाँघे आपने चारों ओर खड़ी दीवार
उसकी नज़र में
आज़ाद आदमी का मतलब है
अराजक, बेशर्म विद्रोही गद्दार
समूह
अपनी बद्बूदार गलाज़त में
लोट लोटकर खुश है
खुली हवा से उसे चिढ़ है
खुश्बू से परहेज़
आज़ादी से नफ़रत
वो संतुष्ट है
कि उसका चक्र्व्यूह पुष्ट है


३० जनवरी २०१२

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