बाज़ार
बचपन के बगैर बच्चे
शर्म के बगैर औरतें
ज़िन्दगी के बगैर बस्तियाँ
लहू के बगैर जिस्म
सोच के बगैर दिमाग
विरोध के बगैर मज़दूर
आग के बगैर आँखें
सपनों के बगैर नौजवान
गैरत के बगैर इन्सान
समंदरों के पार के व्यापारियों आओ
जहाँ सवा अरब इन्साननुमा जीव
कुछ भी सहने को हो तैयार
कहाँ मिलेगा तुम्हें
इतना बडा बाज़ार?
५ सितंबर २०११
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