प्रेम : दस दोहे
प्रेम ना शब्दों में नपे, तुला
सके ना तोल
ओछो कोश कुबेर को, प्रेम भाव अनमोल
प्रेम भाव अति सहज है, स्वार्थ
त्याग से दूर
कंटक चुभे जिमि और पग, नयन और के पूर
थोथा आकर्षण वही, नयनन रहै समाय
नयन-हृदय दोऊ बसै, प्रेम सोई कहलाय
सूरज की पहली किरण, शिशु भोली
मुस्कान
सागर की विस्तीर्णता, मृदुल प्रेम पहचान
ढूँढ़े प्रेम न मिलत है, प्रेम
क्षितिज समान
प्रेम मिलन संयोग का, कठिन गूढ अनुमान
ढाई आखर प्रेम का, कहत न लागै
देर
उमर सिरानी खोज जेहिं, जगत न पायो हेर
आँख कान अरू हाथ पग, मन मानस के
तार
पिय हित लखि सब विधि करे, प्रेम मान आधार
आशाओं के शाख पर, संग लिए
विश्वास
कुसुमित प्रेम बिखेरता, मोहक मधुर सुवास
व्यक्त होत नहीं शब्द में,
प्रेम के बोल अबोल
नयन कहत मन सुनत है, अंतर के पट खोल
प्रेम ढिढोरा न पीटिये, परख
लीजिये साज
वाणी कुछ ना कहत पर, नयन खोलते राज
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