पर्व दिवाली आ रहा खुशियाँ लिए अधीर।
कान गुदगुदी कर गया शीतल मंद समीर।।
वर्षा दे गई शरद को दीवाली सौग़ात।
शस्य श्यामला सज धरा फूली नहीं समात।।
चंचल मन ज्योती कहूँ सकुचत कहूँ लजात।
पनघट पर की दीपिका पवन छुए लहरात।।
तमसो मा ज्योतिर्गमय देत दीप संदेश ।
जग उजियारा करत है लेस नहीं अंदेश।।
वह लक्ष्मी पूजन सफल रहा दीप समुझाय।
हर मन की सदवृत्ति का कर पूजन मन लाय।।
खेत हाट खलिहान पथ घर आँगन चौपाल।
नगर गली नुक्कड सजे पहन दीप की माल।।
दीप जगे यादें जगी जगे सुनहले भाग।
पिय छबि नयनों में जगी हिया जगा अनुराग।।
दमक रोशनी में उठी अमाँ की काली रात।
प्रेम खुमारी के चढ़े निखरे स्यामल गात ।।
दीप प्रतीक ग्यान का दूर करे अंधियार ।
दीपक शुभ संकल्प तव नमन हज़ारों बार।।
दीप महोत्सव टेरता हर कवि मन का तार।
गोरी को जस छेड़ता अपने पिय का प्यार।।
-सत्यनारायण सिंह
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