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आओ ज्योति-पर्व मनाएँ
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प्रेम दीप घट-घट में जगाकर जन मन तिमिर मिटाएँ
बाती बुझ गई जो आशा की फिर से उसे जगाएँ
बिछड़ी सजनी को हम उसके साजन संग मिलाएँ
आओ ज्योति-पर्व मनाएँ
जगमग-जगमग दीप की माला ऐसा भाव जगाए
नभ मंडल के तारांगण ज्यों उतर धरा पर आए
भूला पथिक जो अपनी मंज़िल उसको राह दिखाएँ
आओ ज्योति-पर्व मनाएँ
उच्च विचारों के रंगो से कुटिया महल रंगाएँ
सुंदर संस्कारों के तोरण मन का द्वार लुभाएँ
कृपा लहे लक्ष्मी की सबको धन कुबेर बरसाएँ
आओ ज्योति-पर्व मनाएँ
शुभ रंगोली मधुर वचन की जग पावन कर जाए
कर्म ही पूजा और न दूजा सबको पाठ सिखाएँ
अपने शुभ संकल्पों से हम भारत स्वर्ग बनाएँ
आओ ज्योति-पर्व मनाएँ
- सत्यनारायण सिंह
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दीपमाला
दीप माला सज रही है,
ज्योति मुखरित हो रही है
वेध कर तम स्वच्छ ज्योति
स्नेह पाके हँस रही है।
आज दीपावली सुहावन,
अब अमा में जग उठी है
दे रही आवाहन, लक्ष्मी माँ
की आरती हो रही है।
नयन पुलकित प्रेमियों को
मिलन की बेला मिली है,
प्रेम के दीपक जलाओ,
द्वेष की छाया मिटी है।
गीत वह गाओ कि जिसमें
हित निहित संसार का है
स्नेह का सागर है गहरा,
प्रेम की लहरें उठीं हैं।
हर्ष बरसे वर्ष भर,
जीवन बने सब सुगम सुंदर,
छोड़ो तम की राह
दीपक की ज्योति कह उठी है।
विश्व के सब बंधु मित्रों,
शुभ हो दीपावली तुम्हें
प्रिय शरण की आशा है
पंक्ति ये ऐसी बन पड़ी है।
-भगवत शरण श्रीवास्तव "शरण"
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